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हैं नैन तेरे रतनारे

*गीत*
       *हैं नैन तेरे रतनारे*
 तेरे नैना हैं रतनारे,
 चेहरा हसीं-नूरानी।
मेरी लेखनी की तू-
बन जा ग़ज़ल-बयानी।।
    मेरा रोम- रोम पुलकित,
    जब तुझपे नज़र डालूँ।
    तेरे होंठों की लाली,
    जी करता है पा लूँ।
    शफ़्फ़ाक़ बदन तेरा-
   अद्भुत कला-कहानी।
        मेरी लेखनी की.......।।
तेरी चाल हंसिनी सी,
तेरी अदा मोहिनी सी।
तेरे भाल पे बिंदिया चमके,
अंबर पे चाँदनी सी।
ज़मी पे है तू रब की-
एक जीती मूर्ति-निशानी।।
        मेरी लेखनी की...........।।
तेरे कोमल होंठों के,
हैं शहद से मीठे बोल।
पाजेब की तेरी रुन-झुन,
हैं सरगम-सुर अनमोल।
तू और नहीं है कुछ भी-
कल-कल नीर-रवानी।।
      मेरी लेखनी की.........।।
तू दिल की धड़कन है,
तू जान-जिगर-जवानी।
तू रूह की ताकत है,
तू आग-हवा-नभ-पानी।
घुल जा साँसों में आकर-
ऐ रूपों की रानी।।
      मेरी लेखनी की...........।।
तू शब्द-भाव बन जा,
साकार कल्पना बन जा।
अदबी-बिंब-विधानों का,
संकेत-निशाँ बन जा।
बन जा भाषा मेरी-
सकल ज्ञान-गुण-खानी।।
        मेरी लेखनी की.........।।
बन जा आधार-शिला तू,
मेरे चिंतन-लेखन की।
मैं बोलूँ जग समझे,
हर पीड़ा-दर्द-मनन की।
बन जा स्रोत-प्रेरणा मेरी-
हे दात्री,हे दानी!!
        मेरी लेखनी की..........।।
बन जा गीतों-छंदों का,
स्वप्न-लोक अति सुंदर।
सकें भूल सब जग की पीड़ा,
तेरे चितेरे पढ़-पढ़ कर।
बन जा मेरी काव्य-कल्पना-
वृथा न जाए वाणी।।
मेरी लेखनी की तू,बन जा ग़ज़ल-बयानी।।
               ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
                   9919446372

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1 Comments

Sachin dev

30-Jan-2023 05:07 PM

Nice

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